मॉडर्न लव


क्या प्यार के आगे मॉडर्न लगा देने से 
प्यार बदल जाता है?
क्या वोह प्यार न हो कर मॉडर्न लव बन जाता है?
क्या प्यार की वास्तविक परिभाषा बदलती है?
या फिर हम उन रिश्तों को एक परिभाषा देते है
जहां हमे लगता था की प्यार हो ही नही सकता है
उन रिश्तों को हम अपनाने लगे है
उन्हें पढ़ने लगे है उनकी कहानियां सुन ने लगे है
तो क्या मैं कह सकता हूं की प्यार तो वही है
बस हम हमारी सोच मॉडर्न हो गई है
हालाकि मैं ये कहूंगा की ये एक समय से जुड़ी हुई परिभाषा है
उस हर चीज को, जिसे हम पहले अपनाने की हिम्मत नही रखते थे
आज उसके आगे मॉडर्न लगा कर परिभाषा बदल दी जाती है
हम ने हमेशा प्यार को उम्र की, समय की, कुछ सीमित रिश्तों की,
और विषमलैंगिक दहलीज तक ही कायम रखा है
बहुसंख्या ने जो देखा और जो सुना उसकी को नियम समझ लिया
पर जिस तरह आप एक तूफान को एक डीब्बे में बंद नही कर सकते 
बहते हुए पानी को आकार नही दे सकते है
प्यार भी उसी तरह होता है
प्यार केवल लैला मजनू और शेक्सपियर वाला नही होता
वो हमारे गली मोहल्ले वाला भी होता है
स्कूल के बाद जान कर दो मोहल्ले आगे तक चलते जाना 
की किसी का साथ थोड़ी देर और तक मिले
पानी का ग्लास पापा के घर आने के पहले से तैयार रखना
रसोई में सब्जी काट देना और माँ से पहले सूखे कपड़े तय करदेना 
ये भी तो प्यार के कई परिभाषाएं ही तो है
कभी कभी जल्दबाजी ने और कभी हमारी गलतियों ने
प्यार को बदनाम किया है
मॉडर्न हो या वही ओल्ड स्कूल,आप अपनाने की सुविधा के लिए परिभाषाएं बदलते रहोगे
पर मूल भाव तो हमेशा ही वही इश्क,मोहब्बत, प्यार ही रहेगा

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