बरसात का सत्य


तो फिर आज बारिश हो ही गई
जितने भिन भिन भाव बरखा लाती है इंसान में
शायद ही किसी ऋतु का इतना प्रभाव होता होगा
कई चेहरों पर मुस्कान आई
कई माथों पर शिकन
ऐसा नहीं की इंसान खुश नहीं है
पर परेशानियां उसके घर में 
बारिश के पानी की तरह भरता जा रहा था
ऐसे में वह इंद्र देव को गर्मी से राहत के लिए नमन करता 
या अपने स्तिथि को कोसता
एक तरफ लोग कविताएं लिख रहे
बारिश की खुबसूरती, मिट्टी की खुशबू
प्यार, समोसे और चाय पर लिख रहे
और एक तरफ है कुछ जो डूब डूब कर जी रहे
इसका तात्पर्य ये नही की बरसात खूबसूरत नही
बतसूरत है तो समाज की असमता
लाचारी और विषमता 
मैं भी कहा़ हूं दूध का धुला
मैंने भी बरसात में वियोग पर लिखा प्रेम पर लिखा
कुछ किताबों में पढ़ा कुछ परिस्थितियों से सीखा
जब जब बादल बरसते है
कुछ दिल खिलते है तो कुछ दिल सहम जाते है
तो लो आज आखिर बारिश हो ही गई


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