तेरी आंखे


तेरी आंखें है फिरदौस मेरी
मैं मर जाऊं तो भी गम नही
हुई रुखसत जो इस दुनिया से
तो देखू ये दुनियां आंखों से तेरी

है दर्पन मेरा है परछाई मेरी
जिनसे देखू मुझे तो न दिखे कमी
शायद में पहले ही पर्याप्त थी
पर शायद बंद मेरी ये आंख थी

न मैं बची न मेरा दिल बचा
जब डूब ही गए है तो उतराना क्या
जब खोना ही मुकद्दर था
तो रास्ता पूछने का बहाना क्या

रुकी नजरे दिल उल्फत में फसा
फिर न मैं रुकी न वो रुका
अब कैफियत कोई पूछे तो निशब्द हूं
ये कैसा टोटका है इन आंखों का
की शब्द तो मिलते है पर जुबान चलती नही

जालसाजी कहो या इश्क इसे
अब डर नहीं कयामत से मुझे
है अक्समत मुझे सुकून मिली
मैं कबका डूब चुकी हूं आंखों में तेरी






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