दूर का इश्क


मैं दूर से ही इश्क करलूंग तुझसे
शायद तुझे इस बात की भनक तक ना लगे
तेरी तस्वीरों से ही बातें करलूंगा
लोग दीवाना समझेंगे मुझे
जब तू अंबर को देख कर मुस्कुराएगी
तो आसमान में लालिमा छा जाएगी
शायद इसलिए गोधूली का अंबार गेरुआ होता है
शायद तुझसे शर्माकर ही सूरज समंदर में पिघलता है
उसी समंदर किनारे ही मैं हूं खड़ा
पिघल कर रवि मेरे हातों तक आ रहा है
तेरे मुस्कान को खारे पानी में मिला कर
मेरे होठों के लिए उसे मीठा बना रहा है
तू आंख बंद करे तो नीशा
खोले तो अंतरिक्ष का चमकता तारा है
नाक नक्शे की तो बात ही ना करो
खुदा भी क्या शिल्पकार है
कितनी बारीकी से निखारा है
शायद थोड़ा बदनसीब हूं
मोहब्बत का जो मरीज हूं 
क्या मैं बस ऐसा ही रहूंगा 
क्या मेरा सूरज मेरे सामने भी खिलेगा
जिस जेब-ओ-जीनत का 
जिस खूबसूरती का में मुरीद हूं
रूबरू होने का सवाब मिलेगा मुझे?
क्या इस दूर के इश्क की हंसी का
एक कारण बनने का मौका मिलेगा मुझे?
उस दिन तक..... 
बस दूर से ही इश्क कर लूंगा तूझसे 



Comments

Popular Posts