सांसें


खाली अकेले कमरे में बैठ 
केवल अपनी सासों को सुन रहा था
मैं देख पा रहा था,
किस तरह मेरी आंखे उस छोटे से दायरे में भटक रही थी
मेरे बाल थक कर मेरी आंखों पर गिर रहे थे
कैसे मेरे हाथो को उन्हें सही करने में आज रुचि नहीं थी
मेरे दिल की धड़कन मेरे दिमाग से की कुछ कह रही थी
कुछ अनबन थी, कुछ बहस सी हो रही थी
मेरे शरीर में बढ़ते रक्तप्रवाह से मैं यह भांप रहा था
अचानक पलके भीग जाती है सब धुंधला दिखने लगता है
सिवाए उन चीजों के जिन्हे आप आंखों से नही देख पा रहे थे
बस वो कुछ बातें,लोग,जगह,यादें साफ और स्पष्ट दिख रही थी
मैं हाथों में कलम लिए खो चुका था
मेरी अवचेतन मेरी डायरी के पन्नो को भर रही थी
न जाने कितनों का जिक्र किया है उसने इन कविताओं में
अंजान था में जिन दफ्न यादों से
बंद आंखों ने मुझे कितना कुछ दिखाया है
खुली आंखें जो स्वप्न में भी न दिखा सकी
छोड़ा नही है कुछ भी मैने
सब समेट कर रखा हुआ है
कहीं गलती से वो संदूक न खुल जाए
यादें जिनमे सजा कांट रही है
देख कर अनदेखा कर देता हूं मैं 
अब काटों को भी रास्ते से नही हटाता
खुद में ही मौन थोड़ा सह लेता हूं मैं
खाली अकेले कमरे में बैठ कर
फिर अपनी सासों को सुन लेता हूं मैं

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