बादल


बरसात ने मेरी स्याही को पुकारा है
मुझे आईना दिखा कर मेरी भावनाओं का
मुझे प्रकृति के समक्ष वस्त्रहीन किया है
बादल मेरा मन पढ़ रहे थे
मेरे खयालों का आकार ले रहे थे
इन घने बादलों के अंधेरे 
में एक सुकून सा मिलता है
न जाने क्यों लोग इसकी तुलना दुख दर्द से करते है
धूप ने भी तो कितनों को जुलसाया है
छाले दिए है कितनों को, माथा कितनों का जलाया है
धूप आपको प्रेरणा देती है
तो ये बदल सांत्वना देते है
कहते की तू अकेला नही है 
मेरे भी पीठ पीछे बहुतों ने कहा है
गर देदू मैं इनको इच्छा से ज्यादा 
मेरे प्यार को समझने की न की है कोशिश किसी ने
जो दिया है तुमने वही तुमको दे रहा हूं
मैं भी तुझ जैसा ही हूं बस कुछ पलों के लिए ही जी रहा हूं
तुम बरसात को लिखते हो 
पर बादल को नही
तुम चांद को लिखते हो
पर ज्वार को नही
मेरे आने जाने पर यूं मुस्कुराया न करो
मैं किसानों के आसुओं के लिए आता हूं
तुम्हारे चाय और पकोड़ो के लिए नही
मैं गरजता भी हूं बरसता भी हूं
केवल बरसात नही है कवियों की प्रेरणा
है कुछ चंद नज़्म, जिनमें मैं बस्ता भी हूं

Comments

Post a Comment

Popular Posts