अल्पविराम


मेरी जिंदगी का वाक्य बस अब शुरू ही हुआ था
ये अचानक से अल्पविराम कैसे लग गया
कोई पकड़े हुए है पैर मेरा
ये कैसा भय है, जो मुझे जाने नही दे रहा
मेरी मुस्कान पे मत जाना 
मैं हस्ते हस्ते रो लेता हूं
गम में जो बहते है आसू
उन्हें खुशी का नाम दे देता हूं
मेरे चेहरे को मेरे दुख का पता नही
मेरी आंखों ने मेरी मंजिल से बातें हजार कही
धड़कन कहती कुछ और
दिमाग का पता नही
क्या ये विराम इतना लंबा होता है
नही दिखती इस शाम की सुबह कहीं
मेरे धमनी में बहता खून अब नीला पड़ गया है
देखता हूं की जब जमाना मुझ से आगे बढ़ गया है
मुझे लिखनी थी कहानी पर
अब ये सवाल खड़ा होगया है
जो शब्दों की भीड़ मेरी जुबान पर लगी है
इस अल्पविराम ने उनसे धोका किया है

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