काश


काश कपड़ों की तरह 
हम दिल भी नया पहन पाते
उस पर गरम इस्त्री कर
पुरानी सारी यादें मिटा पाते
काश शारीरिक दर्द की तरह
दिल के दर्द की मेमोरी भी गायब होजाती
पर जैसे हड्डियों का,घुटनों का दर्द 
बढ़ जाता है सर्द बढ़ने पर
दिल का दर्द भी बढ़ जाता है बारिश के गिरने पर
या यू कहूं की बरसात का एक बहाना मिल जाता है
चुकीं दिल का दर्द शायद ही कोई भुला पाता है
पर ये ऐसा भी कोई जख्म नही है
जिसमे भरने की क्षमता नही है
इनको खुरेदना शायद हमारी फितरत ही है
शायद मेरा मन एक ऐसे प्रांत में है
जहां हर पल बस बरसात ही है
हो सकता है की तुम आफताब थे 
तुम ही महताब थे
पर अब जिंदगी है बादलों में
अंधेरा मेरा हमराज है
ना ही कर्ब है ना ही राहत है अब
बातें सारी फरेब होंगी
जो कहूंगा की अब न कोई चाहत है

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