असहजता


 आज फिर वह दिन है
 जिस दिन मैं कोशिश करता हूं
 किताबों को खोलकर उन्हे पढ़ने का 
 इतना सरल नही है जितना लगता है
 कई देर तक उसे घूर कर देखने के उपरांत
 मुझे कुछ अनोखी समानताएं दिखी
 उस किताब के पन्नो में और मुझ में
 वह एक पन्ना जिस तरह जोर लगाकर फड़फड़ा रहा था
 ऐड़ी चोटी का जोर लगा रहा था
 केवल मुड़ कर दाहिने तरफ से बाई तरफ जाने को
 मेरे अंदर भी एक आंधी चल रही थी
 लहरे उमड़ उमड़ कर उठ रही थी
 पेड़ की शाखाएं यूं हाथ पैर मार रही थी
 मानो जल बिन मत्स्य
 मैं उन पन्नों को खुद मोड़ने में और 
 वो पन्ने खुद मुडने में असमर्थ थे
 पर न वो किताब कुछ कहती न मेरा मन
 एक प्राजापत्य विवाह के सामना था
 दोनो के बीच संवाद की गुंजाइश नहीं
 इस लाचारी और तनाव में
 किताब मेज पर और मैं कुर्सी असहजता से बैठा रहा
 

Comments

Popular Posts