पर्याप्त
कुछ यादें हमेशा वर्तमान में बदलने को उबलती रहती है
इस उबाल को आंच देता मेरा दिल है
परिस्थितियां भी पूछे तू कितना काबिल है?
मैं कहता कोई व्यथा नही
न कोई ऐसा दुख है भारी
जो मेरे कदमों को पीछे खींचे
सब है बौने मेरे मनोबल के आगे
है साफ दिखता सब आराभ से मुझे
मुंह मोड़ने की बीच में मेरी आदत बुरी है
नजर हैं तिरछी पर चाल सीधी है
एक कल है भविष्य में, जो मेरी स्याही से लिखी है
मिटाने को इसे लिखा नही
दफनाने को इसे जीया नही
मैं मध्यरात्रि का जलता सूरज हूं
रात्र काली का मैं दीपक हूं
हां कामियां होगी मुझ में कई
पर आपने अपन में, मैं पर्याप्त हूं।
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