कला और जीवन


शब्द मेरे मैं नही चुनता
कविता मेरी खुद चुनती है
तुम कला को नहीं आकारते
कला तुम्हे कलाकार बनाएं 

तुम में जब आजाए अहम
अहमियत तुम्हारी कम हो जाती
जो नीचे देखे जब दूसरों पे
कद ऊंची उनकी हो नही पाती

सच्चे मित्र है इतर की भांति
पर कुछ अंग्रेजी परफ्यूम है
जो उड़ जाता है घाम होने पर
साथ इनका अल्पकालीन है

मैं कहता तुम्हे
तुम खुद के आधार हो
हो शाखाएँ पकड़े उस मरघट के पेड़ की
और कहते दुष्कर जीवन है

सूरज को अपने तप का भान है
है जल रहा वह सदियों से
तुम एक परीक्षा अग्नि की
देने में थर थर कांपते हो
और कहते जीवन बड़ा कठिन है
कैसे तुम इतना मुस्कुराते हो

Comments

  1. Janta jawab chahati hai kya Raaz hai perfume ka sir?🤣

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  2. This comment has been removed by the author.

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  3. Sir aap khamosh nahi reh sakte we need and🤣

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    1. dekhiye jab unse baat hojayegi tab puchh kar aapko iktala kardenge

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