गुलाम


मैं उन भीगे हुए जुल्फों का दीदार चाहता हूं
बेरस सी लगती है ये आजादी,
तेरे केसुओं का होना गुलाम चाहता हूं 

रात तो ज़ाया होती है मयकशी में
मैं अपनी सुबह भी मदहोश चाहता हूं

यूं तो बाजार ए इश्क में सब लगा रहे है बोलिया
पर उल्फत में तेरे में नीलाम होना चाहता हूं

तू झटकती है जो जुल्फों को, तो बादल बरस जाते है
वीरान पड़े इस दिल पर,कुछ छीटों की इनायत चाहता हूं

मेरा इश्क अब मिलता है, मेरे दिल की तुरबत में
तू लौट के आजा, में फिर मुहब्बत में जीना चाहता हूं

बेरस सी लगती है ये आजादी,
तेरे केसुओं का होना गुलाम चाहता हूं 


Comments

Popular Posts