कयामत


तेरी तस्वीर आज देखी मैने
वोह कातिल नजर मुझे घूर रही थी
मुझ से मेरी रूह छीन रही थी
मैं पड़ा हुआ हूं ढेर होकर
तेरी चक्षुओं के नशे में खोकर

ये बहुत ही अजीब सा एहसास है
खुदको पूरी तरह निर्बल महसूस करना
बेमतलब, बेवक्त असहाय महसूस करना
एक पूरी तरह अपरिचित व्यक्ति को
खुद पर इतना अधिकार कब और कैसे मिलगया
और क्या उसे खुद ज्ञात है इस शक्ति का 
जो आपने उन्हे दी है........
जवाब है नही!
खूबसूरती इस विश्व में सबसे शक्तिशाली है
और स्त्रैण सौंदर्य की रचना पर तो
श्रष्टि रचैता को भी अभिमान है

क्या वो जानती है कि उसके हंसी के आगे
सूरज की चमक भी फीकी है
घने जंगल को तुम्हारे बालों से ईर्ष्या है
ये समंदर खुद तुम्हारी आंखों में डूबना चाहता है
और मैं..... एक महत्वहीन मामूली इंसान
मेरी दशा की कोई परिभाषा ही नही

क्या जिस आसमान को मैं देख कर लिख रहा हूं
उस आसाम को तुम भी ताक रही होगी
जिन पंक्तियों को मैं रेशम में पिरो रहा हूं
क्या तुम्हारे गले की शोभा बढ़ा पाएगी
कभी सोचता हूं तुमसे रूबरू मिलकर 
जो कविता बनेगी वो शायद कयामत न ले आए
कहीं स्याही खतम न हो जाए 
कहीं कागज़ कम न पड़ जाए

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