खफ़ा
मेरे भीतर के शब्द
मेरी खामोशी से खफा है
न मेरे आसुओं को
मेरी मुस्कुरहाट का पता है
बाग में खिले है
बस मुरझाए हुए कुछ फूल
न धरती को बरसात का
न बसंत को हरियाली का पता है
यूं चमकते सितारे है लाखों,गगन में
है चांद फिर भी लगा
अकेले जतन में
की चमकने से उसके
हैं रौशन चंद लम्हे
भले वो उजियारा
सूर्य का ऋण हो
ये दुनिया ये लोग
ये आशीकी के फसाने
ये चमकती हुई आंखें
वोह चंचल इरादे
ये भ्रम है तुम्हारा
सुख अल्पकालीन है
चूकीं तेरा सुख तुझमें
क्यों औरों में तलाशे है
जब टूटेगा दिल ये
फिर खामोशी थामोगे
शब्द रहेंगे खफा
ना दिन लाभ होगा
न संध्या पाओगे
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