आंखों में ईश्क

आज आंखों में ईश्क भर आया 
होठों पे झिजक
ज़ेहन में तेरा खयाल आया 
चाहतों का दरिया मेरे समक्ष

बिछौना अब छोटा लगता है
रजाई थोड़ी सर्द
चेहरे पर न मुस्कान आती 
न माथे पर शिकन
किस शून्यता में समा चुका हूं
केवल सवाल है अनगिनत 

मेरे दिल की कपन को
कोई परिभाषा मिलेगी?
यूहीं रह रह यह कांपता रहेगा?
वो एक बच्चे की तरह 
हाथ फैलाए हुए है
क्या कोई गोद में लेकर उसे पूचकारे गा?

यूहीं चलते चलते 
उन हाथों का करीब आना
शर्माती हुई उंगलियों का गले लगना
उस एहसास से मुख का खिल जाना 
मेरा मन न जाने मेरी आंखों में 
क्या क्या चित्र बना रहा है
न उसके परे कुछ देख पता हूं
न मन को रोक पाता हूं

वजह बेवजह....
बस आंखों में ईशक भर आता है
दिल में आसुओं का समंदर

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