रकीब

तुझे बाहों में किसी और के देखकर तड़पता हूं
तेरी जुल्फों में किसी का हाथ देख बिखरता हूं
है खता नही तेरी तू तो अनजान है
तुझे जान ने की गलती कर बैठा मैं परेशान हूं

हथेली में है दिल मेरा खून जिस से बह रहा 
सीने में है वीरानगी दिल अब दश्त बन रहा
मैं चढ़ रहा हूं सीढियां, नमाजें अदा कर रहा 
है कौन वो रकीब जिसे, तेरे दीदार का सवाब मिल रहा

न अध्रों पर है बात मेरी आंखों में इश्क दिख रहा 
नाकाम देखने में तू आंखों पर पर्दा ढक रखा
तू है कहीं मैं हू कहीं न बात हमनें कर रखा
है दूर का ये इश्क मेरा मैं दूर से ही जल रहा

न पास आना तू मेरे ये रिश्ता धरती भास्कर सा
पर बिन तेरे न हो गुजारा तू धूप मेरी चाहत का
मैं जलूं कुछ तू जले और जल रहा ज़माना भी
है सब को एक रोग लगा है इश्क के मरीज सभी


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