अतीत

जब मुझे आज की त्रासदी सताती है
में कल को याद करता हूं
फिर बंद आँखें कुछ हस्ता हूं
कुछ आँखें मूंदे रोता हूं

अतिति मेरा मुझे पीछे खींचे
वर्तमान मेरे आज को सींचे
सोच रहा क्या होगा कल का
भार मेरा क्या होगा हल्का?
मौन नही था, अब हो गया हूं
मै गतिमान अदृश्य हो गया हूं
न दिख रहा, न कुछ देख रहा हूं
चक्रव्यूह में खुद को फेक रहा हूं
जिसे बनाया मैंने है और तोडूंगा भी मैं
अब फिर गिरकर चलना सीख रहा हूं

जब भर आती है आंखे
मैं फिर कल में चला जाता हूं
अतीति के दर्द को फिर जी आता हूं
हथेलियों में अपने मैं कल को ले जी रहा हु
जब सूनी हो बाहें.. तब
खुद ही को गले लगता हूं

मेरा आसमां बिलख बिलख कर रोता है
मेरे धरती की प्यास बुझाने को
अंबर से धरा को पाने को
एक दूसरे में विलीन हो जाने को

बस यही कहानी कुछ मेरी है
मेरी चाहतों की मेरी आदतों की
मेरी अश्कों की बरसात को
न चाहतों की धारा मिलती है
बस अतीत का एक साथ है
एक बहुत पुरानी बात है



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